क्यूँ कभी एक भी दर्द इंतिहा तक आ न सका
ऐसा क्यूँ की एक भी साँस सीने में समा न सका
ऐसा क्यूँ की एक भी साँस सीने में समा न सका
यूँ ख़ून-ओ-पसीना साथ-साथ कई बार निकला
कभी अपना ख़ून अपने पसीने से मिला न सका
चेहरे के एक-एक हर्फ़ को पढ़ा भी भुलाया भी
मगर एक भी हर्फ़-ए-ख़ुफ़्ता कभी भुला न सका
किसी का कद बढ़ा दिया किसी का छोटा किया
मगर एक कद को वो दूसरे कद से मिला न सका
यूँ तो अनगिनत लम्हें दिल की पनाह में थे मगर
किसी एक भी लम्हा को सुकूँ से सुला न सका
यूँ तो वो सारा चराग़ हवा की ज़द में न था मगर
कभी ख़ुद से 'धरम' एक भी चराग़ बुझा न सका