आत्मा का परमात्मा से मिलन कराता है योग
देता है अलौकिक सुखों को भोगने का संयोग
रखता है मन स्वच्छ तन को करता है निरोग
बुद्धि हमेशा रहे स्थिर भले मिले ही कोई सोग
अपनी इच्छा मन के बस में बिकट है यह रोग
आत्म संयम वरदान योग का रहते मुक्त लोग
बड़ा सहज है मन का गिरना मिले जब बिरोग
देता है बल योग बिरोग में सम्भले उससे लोग
तन के भोगी के लिए सहज नहीं मन का भोग
योग निरत जन मन का भी करता है उपभोग
योगी जन के तन से मन का नहीं रहता वियोग
तन को मन का खूब मिलता रहता है सहयोग
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सोग : मृतशोक, मातम, मुसीबत, ग़म, रंज
बिरोग : दुःख, मुसीबत, सदमा, जुदाई