Thursday 11 June 2015

अपना जिस्म माप लो

तुम अपने सारे ख्वाब समेट कर मेरे पहलू में रख लो
औ" मेरे साने पे सर रख कर मुझे बाहों में भर लो

ज़माना जरूर हैरत से देखेगा हम दोनों को मगर
बहुत मुख़्तसर ज़िंदगी है इसे मोहब्बत से जी लो  

ठंढी हवा के थपेड़ों में गर्म साँसों की मिलन होगी
औ" दो जिस्म एक हो जाएँगे ऐसी ज़िंदगी जी लो

ज़माना तो जिस्म का मुरीद है मगर मैंने तुझे चाहा
आ के मेरी जाँ कर आलिंगन एक दूसरे के होंठ पी लो

तुमने हमेशा जिस्म में उतरकर मोहब्बत मापी है "धरम"
आज मेरे मोहब्बत में उतरकर तुम अपना जिस्म माप लो 

Sunday 7 June 2015

अनकहे शब्द औ" मचलते ख्वाब

कुछ अनकहे शब्द
जज़्बात से अब भी दबे हैं
दिल में उफान उठ रहा है
स्वांस का प्रवाह सामान्य नहीं
कदम कभी छोटे तो कभी बड़े
मगर बातें जुबाँ पर नहीं आ रही
बस एक हिचकिचाहट है

कुछ मचलते ख्वाब हैं
कभी समंदर से हिलोरे मारते
कभी आसमाँ में स्वच्छंद उड़ान
कभी घर के दरवाजे पर चुपके से दस्तक देते
बस मुस्कुरा कर रह जाते
नज़र झुकाते चल देते मुझसे दूर
उस मुस्कराहट को मुझे अब पढ़ना नहीं आता
वक़्त ने समझदारी की सारी बारीकियां ख़त्म कर दी
अब ये सारे ख्वाब दिल पर बस बोझ हैं

Thursday 4 June 2015

चंद शेर

ज़हर का घूँट ही मेरे मर्ज़ की बस एक दवा थी
मेरे मोहब्बत की मंज़िल "धरम" बस कज़ा थी 

Wednesday 3 June 2015

अपनी तन्हाई की बातें

तुझसे कैसे कह दूँ खुद अपनी तन्हाई की बातें
डर है कहीं हो न जाए ये मेरी रुस्वाई की बातें

ज़माना अब भी मुझे देखता है गैरों की नज़र से
वफ़ा करता हूँ औ" हो जाती है बेवफाई की बातें