Friday 24 March 2023

आँखों को ज़हराब लगता है

तिरा तुझ सा भी होना  महज़ एक ख़्वाब लगता है
लफ़्ज़-ए-मोहब्बत भी मुसल्लह-इंक़लाब लगता है

हर हुजूम बस एक बहता दरिया है  गुज़र जाता है 
यहाँ न कोई दुश्मन  न ही कोई अहबाब लगता है

क्यूँ दिल ने एक रिश्ता  दिमाग़ से बनाना चाहा था 
जब दोनों एक दूजे को  हमेशा बे-नक़ाब लगता है

कभी हाथ  बढ़ाया ही नहीं  दिल मिलाया  ही नहीं
कैसा शख़्स है  वो फिर भी  एक सिहाब लगता है 
  
एक वरक़ का एक ख़त औ"  सिर्फ़ एक ही लफ़्ज़
माज़ी मौजूदा मुस्तक़बिल सबका जवाब लगता है

'धरम' कोई भी सितम अब नज़र बयां नहीं करता 
अश्क़ हो या हो लहू  आँखों को ज़हराब लगता है 


मुसल्लह-इंक़लाब : ऐसा परिवर्तन जो हथियार बंद लड़ाई के द्वारा आए
अहबाब : मित्र
सोहराब : शक्तिशाली  
दूजे : दूसरे
सिहाब : साथी, मित्र
माज़ी : गुज़रा हुआ
मौजूदा : वर्तमान
मुस्तक़बिल : आने वाला 
ज़हराब : विष घुला हुआ पानी

Wednesday 15 March 2023

चेहरों का दस्ता रखा

दरिया में जब भी उतरा  किनारे से वाबस्ता रखा
मौजों से दिल भी लगाया साँस भी आहिस्ता रखा

जिसे सितम कहा था  वो वक़्त का एक करम था 
ख़ार के जिल्द में ब-तौर ख़त एक गुलदस्ता रखा

इबादत भी किया  मगर कभी कोई ख़ुदा न रखा 
औ" ज़िंदगी की राह में हर कदम बरजस्ता रखा

सिर्फ़ नाम याद रहा चेहरा ख़याल आया ही नहीं
आईने ने भी अक्स हमेशा चेहरों का दस्ता रखा

मोहब्बत में क़त्ल बाक़ी और क़त्ल से अलग था 
ज़िबह के बाद भी  सिर को धड़ से पैवस्ता रखा 

अजब तौर-ए-इश्क़ था सनम था की ज़माना था 
दिल को दिमाग़ से 'धरम' मुसलसल बस्ता रखा      
 

वाबस्ता : आबद्ध (जुड़ाव)
आहिस्ता : धीरे-धीरे
गुलदस्ता : फूलों का गुच्छा  
बरजस्ता : बिना सोचे 
दस्ता : समूह
पैवस्ता : जुड़ा हुआ
बस्ता : बंधा हुआ 

Monday 13 March 2023

कैसा तरीक़ा ईजाद करता है

दरवाज़ा कदमों की आहट से यह याद करता है 
हर रोज़ एक शख़्स यहाँ  क्यूँ फ़रियाद करता है

वो शख़्स तो एक समंदर भी है  एक प्यास भी है 
रोज़ अश्क़ों से उजड़ा गुलशन आबाद करता है

जब चेहरा परदे में रहा दिल सीने के बाहर रहा   
ये दिल ज़माने पर  यूँ इस तरह बेदाद करता है

ख़यालों की दुनियाँ है वो ख़्वाबों का आशिक़ है      
वो शख़्स ख़ुद अपना भी कहाँ मफ़ाद करता है

एक कैसी शाम हुई  दिन फिर कभी न निकला 
ये कैसा इश्क़ है क्यूँ इस तरह रूदाद करता है 

आँखों में लहू उतारता है रगों में पानी बहाता है
'धरम' सुकूँ का ये कैसा तरीक़ा ईजाद करता है 


फ़रियाद : न्याय-याचना
आबाद : ख़ुशहाल
बेदाद : ज़ुल्म
मफ़ाद : भलाई
रूदाद : हाल/कहानी
ईजाद : अविष्कार

Tuesday 7 March 2023

ग़ुर्बत-ए-ग़ुरूर तो नहीं था

सितारों का जहाँ  बहुत दूर तो नहीं था 
ये दिल कभी इतना मजबूर तो नहीं था
 
मैकशी में शरीक होना आँखों से पीना
ये कोई  मयकदा-ए-शऊर तो नहीं था

ग़म में डूबा रहना ग़म की बातें करना 
ये ज़िक्र एक जश्न-ए-सूरूर तो नहीं था 

जाम उठाकर बिना पिये ही  रख देना 
ये गुस्ताख़ी शौक़-ए-हुज़ूर तो नहीं था 

हाथ उठाना औ" कोई दुआ न माँगना
ये ब-तौर-ए-ग़ुर्बत-ए-ग़ुरूर तो नहीं था 
 
हर बात "धरम" दिल पे ही लगती थी       
सीने में दिल  कोई नासूर तो नहीं था 


 
मैकशी : मद्यपान
शऊर : काम करने का ढंग 
सुरूर : मस्ती, हल्का सा नशा
गुस्ताख़ी : अशिष्टता
ब-तौर : के समान
ग़ुर्बत : ग़रीबी
ग़ुरूर : अभिमान
नासूर : एक प्रकार का घाव जो हमेशा रिस्ता रहता है

Sunday 5 March 2023

कभी दूर जाया नहीं जा सकता

कि ये ग़म महज़ एक शाम में  भुलाया नहीं जा सकता  
दिल को यूँ  किसी भी आग में जलाया नहीं जा सकता

अपनी गुस्ताख़ी अपना इंसाफ़ औ"अपनी ही मुंसिफ़ी   
कैसे कहें  ख़ुद पर कभी हाथ उठाया नहीं जा सकता 

ये कभी ना ख़त्म होने वाला सफ़र-ए-दश्त-ए-तारीक़ी
कैसे कह दें  कोई और कदम बढ़ाया नहीं जा सकता

ये तौर-ए-महफ़िल की  बोलने के लिए मजबूर करना
औ" ये हुक्म कि वापस फिर बिठाया नहीं जा सकता

बहार को ये वसूक़ की  रंग-ए-फ़िज़ा क़ायम ही रहेगा 
ख़िज़ाँ को ये मालूम और रंग  उड़ाया नहीं जा सकता

कुछ तो यूँ ही दिल के क़रीबी की ख़ुश-फ़हमी 'धरम'   
एक और ये भरम की कभी दूर जाया नहीं जा सकता