Saturday 3 October 2015

ज़माने से नेकी कर

तुम्हें ग़र खुद पर यकीं है तो औरों पर भी यकीं कर
तू दिल से निकाल दे रंजिश औ" ज़माने से नेकी कर

इंसान ग़र खुश हो किसी से तो ख़ुदा भी मुस्कुरा देता है
कर के दीदार-ए-नज़र तुम सारे ज़माने को ख़ुशी कर

गहरे ज़ख्म का जायका हर किसी के नसीब में नहीं होता
ये नसीब तुम्हें ख़ुदा ने बख़्शा है तू इसे जी औ" मस्ती कर

न हो सके कोई तुझ से छोटा औ" न तुम रहो किसी से बड़ा
करना हो तो ज़माने में तुम "धरम" ऐसी अपनी हस्ती कर 

Friday 2 October 2015

गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा का अनर्गल प्रलाप

गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा का अनर्गल प्रलाप
खुद देकर ज़ख्म करते घड़ियाली विलाप

आरक्षण राग का तुम तो खूब करते अलाप
मुफ़लिस तो अब भी कर ही रहे हैं बाप-बाप

सरकारी तंत्रों को खाकर तुम लेते भी नहीं डकार
पैसा मुफलिसों का खाकर खुद ही करते हो पुकार
न चलेगा ये अत्याचार! न चलेगा ये अत्याचार!

जो कोई गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देते करके व्यापार
दो साधुबाद उन लोगों को मत करो उनपर प्रहार
क्यों हो जाते हो तुम उसे भी लील लेने को तैयार
जब लील लोगे तुम इसे भी तब उठेगा हाहाकार

क्यों तुम्हारा हर नीत अब हो रहा यहाँ विफल
क्यों हो रहे बुद्धिजीबी हर कदम पर असफल
जब परोसोगे हर थाली में तुम यहाँ विष-फल
तो कैसे उगेगा वह वृक्ष जो जनेगा अमृत-फल

हैं प्रार्थना तुमसे अब मत ज़ुल्म कर शिक्षा पर
बना ऐसा तंत्र कि दीपक ज्ञान का जले हर घर
न हो हर किसी के घर में कभी भी अँधेरा प्रखर