Monday 23 July 2012

पैगाम-ए-मोहब्बत


हवाओं के हाथों उसने पैगाम भेजा है
अपने दिल पर लिख कर मेरा नाम भेजा है
हर रश्म-ए- उल्फत को तोड़कर
मोहब्बत का पैगाम सरे-आम भेजा है

फूलों से थोड़ी खुशबू भी ली है
तितलियों से थोडा रंग लिया है
परियों की सुन्दरता में सजा कर
मोहब्बत का पैगाम सरे-आम भेजा है

कभी झुककर सलाम भेजा है
कभी लिखकर कलाम भेजा है
हर वादियाँ-ए-हसीं में उसने
मोहब्बत का पैगाम सरे-आम भेजा है

मुस्कुराना एक इल्म है उसका
नज़र में हया भी कुछ कम नहीं
इकरार-ए-मोहब्बत में "धरम"
तुमको भी तौलना कुछ कम नहीं ...  

1 comment:

  1. gd improvement. May be better? --- Paigaam sare-aam bheja hai. In place of of mohabbat ka..........

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