1.
कुछ आड़ी तिरछी-लकीरों को
मैं यूँ ही सुलझा रहा था
मगर मैं और उलझता ही जा रहा था
जैसे वह लिखावट बिलकुल ही अस्पष्ट हो
कि लिखी हो किसी पत्थर पर
खुद हमारी ही किस्मत
2.
वो जो पंछी का जोड़ा बैठा करता था
अब तो दिखाई भी नहीं देता
किसी ने पेड़ की वो डाल
बस अनजाने में ही सही
मगर काट दी है ...
3.
वक़्त ने मुझको भी तन्हा कर दिया
क्यूँ इतना सन्नाटा है मेरे पास
इसको समेटने का साहस भी तो नहीं
उसकी यादें भी तो अब बची नहीं
कुछ आड़ी तिरछी-लकीरों को
मैं यूँ ही सुलझा रहा था
मगर मैं और उलझता ही जा रहा था
जैसे वह लिखावट बिलकुल ही अस्पष्ट हो
कि लिखी हो किसी पत्थर पर
खुद हमारी ही किस्मत
2.
वो जो पंछी का जोड़ा बैठा करता था
अब तो दिखाई भी नहीं देता
किसी ने पेड़ की वो डाल
बस अनजाने में ही सही
मगर काट दी है ...
3.
वक़्त ने मुझको भी तन्हा कर दिया
क्यूँ इतना सन्नाटा है मेरे पास
इसको समेटने का साहस भी तो नहीं
उसकी यादें भी तो अब बची नहीं
लिखावट के चंद अक्षरों को भी
जी करता है खुद से मिटा दूं
मगर जब भी मिटाने जाता हूँ
एक याद उभर कर आती है ...
जी करता है खुद से मिटा दूं
मगर जब भी मिटाने जाता हूँ
एक याद उभर कर आती है ...
4.
आज बदल गरज कर बिना बरसे ही चला गया
न जाने क्यूँ मुझे एक फिर उसकी याद आ गई ....
न जाने क्यूँ मुझे एक फिर उसकी याद आ गई ....
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