1.
अब ख़ाक भी तो नहीं मिलता कि जिसको छान सकूँ
जो कभी रही थी मेरी नबाबी अब उसको पहचान सकूँ
2.
चेहरा पूरा है आईना पूरा है फिर भी अक्स टूटा है
बड़े इल्म से आज मैंने आईने में दिल को देखा है
3.
सूनेपन को लपेटो चादर में और फेंक डालो
खुद से गुफ़्तगू कर लो की रात बीत रही है
4.
वह तो इन्तहां की सारी हदें पार कर गया
मुझको तन्हा छोड़ा और बीमार कर गया
5.
आईना कहाँ किसी की तरफदारी में बोलता है
वो जब भी बोलता है ईमानदारी से बोलता है
अब ख़ाक भी तो नहीं मिलता कि जिसको छान सकूँ
जो कभी रही थी मेरी नबाबी अब उसको पहचान सकूँ
2.
चेहरा पूरा है आईना पूरा है फिर भी अक्स टूटा है
बड़े इल्म से आज मैंने आईने में दिल को देखा है
3.
सूनेपन को लपेटो चादर में और फेंक डालो
खुद से गुफ़्तगू कर लो की रात बीत रही है
4.
वह तो इन्तहां की सारी हदें पार कर गया
मुझको तन्हा छोड़ा और बीमार कर गया
5.
आईना कहाँ किसी की तरफदारी में बोलता है
वो जब भी बोलता है ईमानदारी से बोलता है
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