Wednesday 31 January 2018

चंद शेर

1.
ये बिल्कुल लाज़िमी नहीं 'धरम' की ज़िन्दी का हर सपना पूरा हो
मगर ऐसा भी न हो कि किताब-ए-ज़िंदगी का हर वरक़ अधूरा हो

2.
ज़माने की बात चली "धरम" तो हमने भी ज़माने को सुना दिया
पहले तो हरेक शख़्स को पहचाना और फिर हर चेहरा भुला दिया

3.
क्यूँकर हर मुलाक़ात में "धरम" लब ख़ामोश रहता है सिर्फ चेहरा बोलता है
कि एक के बाद एक और दर्द और फिर सिर्फ सिलसिला-ए-दर्द ही चलता है

4.
अब आ की तुम भी उसी आग में जलो जिस आग में जलता हूँ मैं
कभी तो पत्थर था "धरम" अब तो मोम की तरह पिघलता हूँ मैं

5.
हम कब तलक ज़िंदा रहें महज़ एक तेरे वादा-ए-सुखन के साथ
कि दिल हर रोज़ बुझता है "धरम" एक अनजाने जलन के साथ


Saturday 6 January 2018

चंद शेर

1.
हक़ीक़त में भी मेरी ज़िंदगी में 'धरम' तुम तुम न थे मैं मैं न था
औ" बाद मरने के भी मेरी कब्र में तुम न थे तेरी कब्र में मैं न था

2.
कि अभी तो मैंने बात रखी थी अभी ही उसने टाल दी
मेरे पैदा होने से पहले ही 'धरम' उसने गर्दन हलाल दी

3.
खुद तेरी ही महफ़िल में "धरम" तेरे नाम का कोई जाम भी नहीं
ये तेरी ज़िंदगी में कैसा मुक़ाम है कि अब तुम बदनाम भी नहीं

4.
कि तुमको आवाज़ दूँ तो दिल दुखता है न दूँ तो जी घबराता है
देखूँ जो गैरों से बात करते "धरम" तो पूरा बदन जल जाता है 

5.
हरेक दिलाशा महज़ एक भरम है हर जोड़ से टूटता करम है
बात तो सब के डूबने की थी पर क्यूँ डूबता सिर्फ "धरम" है

6.
कि दिल से दिल मिलाकर भी जब उसने वफ़ाई छोड़ दी
नज़र से नज़र मिलाकर "धरम" हमने भी बात मोड़ दी