1.
ये बिल्कुल लाज़िमी नहीं 'धरम' की ज़िन्दी का हर सपना पूरा हो
मगर ऐसा भी न हो कि किताब-ए-ज़िंदगी का हर वरक़ अधूरा हो
2.
ज़माने की बात चली "धरम" तो हमने भी ज़माने को सुना दिया
पहले तो हरेक शख़्स को पहचाना और फिर हर चेहरा भुला दिया
3.
क्यूँकर हर मुलाक़ात में "धरम" लब ख़ामोश रहता है सिर्फ चेहरा बोलता है
कि एक के बाद एक और दर्द और फिर सिर्फ सिलसिला-ए-दर्द ही चलता है
4.
अब आ की तुम भी उसी आग में जलो जिस आग में जलता हूँ मैं
कभी तो पत्थर था "धरम" अब तो मोम की तरह पिघलता हूँ मैं
5.
हम कब तलक ज़िंदा रहें महज़ एक तेरे वादा-ए-सुखन के साथ
कि दिल हर रोज़ बुझता है "धरम" एक अनजाने जलन के साथ
ये बिल्कुल लाज़िमी नहीं 'धरम' की ज़िन्दी का हर सपना पूरा हो
मगर ऐसा भी न हो कि किताब-ए-ज़िंदगी का हर वरक़ अधूरा हो
2.
ज़माने की बात चली "धरम" तो हमने भी ज़माने को सुना दिया
पहले तो हरेक शख़्स को पहचाना और फिर हर चेहरा भुला दिया
3.
क्यूँकर हर मुलाक़ात में "धरम" लब ख़ामोश रहता है सिर्फ चेहरा बोलता है
कि एक के बाद एक और दर्द और फिर सिर्फ सिलसिला-ए-दर्द ही चलता है
4.
अब आ की तुम भी उसी आग में जलो जिस आग में जलता हूँ मैं
कभी तो पत्थर था "धरम" अब तो मोम की तरह पिघलता हूँ मैं
5.
हम कब तलक ज़िंदा रहें महज़ एक तेरे वादा-ए-सुखन के साथ
कि दिल हर रोज़ बुझता है "धरम" एक अनजाने जलन के साथ
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