दिल से निकला तो था मगर दूर नहीं था
अलग रहता तो था मगर महजूर नहीं था
बुनियाद इश्क़ की अश्क पर टिकी रही
अश्क बहता तो था मगर मौफ़ूर नहीं था
कुछ भी ख़याल नहीं कि आँखें क्यूँ झुकीं
ये कि दोनों अब साबिक़-दस्तूर नहीं था
या तो जज़्बात या जुनूँ या अश्क या लहू
कुछ तो जलता रहा बज़्म बे-नूर नहीं था
ख़्वाब का दरिया औ" ख़याल की कश्ती
उस सफ़र में कौन था जो रंजूर नहीं था
मसअला-ए-दिल है बस हूँक उठती रहे
"धरम" ये मुआमला किसे मंज़ूर नहीं था
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महजूर: बिछड़ा हुआ
मौफ़ूर: असीमित
साबिक़-दस्तूर: पहले की तरह
बे-नूर: प्रकाश रहित
रंजूर: ग़मगीन
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