कि क़ब्र से निकलकर वो फिर से घर आया है
उसकी यादों का सैलाब फिर से नज़र आया है
इन्सां रास्ते नसीब तिरे हर ठोकर का शुक्रिया
जो सौ बार गिरकर भी उठने का हुनर आया है
वक़्त का तक़ाज़ा है की वो तिरे दहलीज़ आया
कब किसके दर पर यूँ माँगने मो'तबर आया है
बे-दर्दी है दिल पर छा जाता है हुक़्म करता है
तिरा नाम जब भी आया है इस कदर आया है
हर बज़्म में मोहब्बत की एक ही सी दास्ताँ है
सब के सीने में दिल पिरोने शीशागर आया है
तिरे दिल में किसी ज़ख़्म के निशाँ हैं ही नहीं
कि पास तिरे जो भी आया है उम्र-भर आया है
कैसे कह दूँ कि ज़िंदगी पर तेरा एहसान नहीं
अब सितम जो भी आया है मुख़्तसर आया है
दिल को इस बात पर तो बिल्कुल यकीं नहीं
कि टूट-कर "धरम" इसबार वो इधर आया है