Monday 29 July 2024

जो भी आया है उम्र-भर आया है

कि क़ब्र से निकलकर  वो फिर से घर आया है  
उसकी यादों का सैलाब फिर से नज़र आया है

इन्सां रास्ते नसीब  तिरे हर ठोकर का शुक्रिया
जो सौ बार गिरकर भी उठने का हुनर आया है

वक़्त का तक़ाज़ा है की वो तिरे दहलीज़ आया   
कब किसके दर पर यूँ माँगने मो'तबर आया है

बे-दर्दी है  दिल पर छा जाता है हुक़्म करता है   
तिरा नाम जब भी आया है  इस कदर आया है

हर बज़्म में मोहब्बत की एक ही सी दास्ताँ है   
सब के सीने में दिल  पिरोने शीशागर आया है

तिरे दिल में  किसी ज़ख़्म के निशाँ  हैं ही नहीं 
कि पास तिरे जो भी आया है उम्र-भर आया है

कैसे कह दूँ कि ज़िंदगी पर तेरा एहसान नहीं     
अब सितम जो भी आया है मुख़्तसर आया है
   
दिल को इस  बात पर तो  बिल्कुल यकीं नहीं  
कि टूट-कर "धरम" इसबार वो इधर आया है

Tuesday 2 July 2024

जिस्म अपना पिरोने लगा था

कोई दवा न दी गई थी मगर मरज़ ठीक होने लगा था
चाँद आसमाँ से उतरकर  सीने में कहीं खोने लगा था

बरसों की बेचैनी थी यकायक दूर तो न हो सकी मगर 
उसके हाथों में जादू था वो आँखों में नींद बोने लगा था 

वो आख़िरी मुलाक़ात थी  बस साथ बैठे आँखें मिलाई
फिर न जाने क्यूँ  दोनों बिना बात के ही  रोने लगा था

उन लम्हों को बुनते सिलते काफ़ी वक़्त गुज़र गया था 
आँखों में नींद तो न थी मगर न जाने क्यूँ सोने लगा था

वो सफ़ीना-समंदर का इश्क़ था वहाँ होना ही क्या था
समंदर सफ़ीने को आँखों में बिठाकर डुबोने लगा था

आधी उम्र बीतने के बाद "धरम" वो मुलाक़ात हुई थी  
दोनों बाँहों की कैंची में  जिस्म अपना पिरोने लगा था