यकीं तो नहीं था मगर फिर भी हाथ बढ़ाया था
इश्क़ था तो नहीं मगर फिर भी ख़ूब जताया था
उस रिश्ते को छुपाया फिर झँकझोर कर देखा
तिरे लुटने से पहले हाँ ख़ुद को ख़ूब लुटाया था
उस रहबर ने मंज़िल की राह दिखाने से पहले
याद नहीं घूँट लहू का कितनी बार पिलाया था
ज़िंदा रिश्ता जब दफ़्न किया तो उसके पहले
न तो ख़ुद से बात किया न ही मुझे बताया था
कुछ यादें जो क़ैद थी कुछ साँसें जो दफ़्न थी
उस अँधेरी कोठरी में किसने उसे बसाया था
कि शाख़ें आसमाँ में हैं जड़ दिल में पैवस्त है
बिना मिट्टी हवा पानी के बाग़ एक लगाया था
सबने सारी ख्वाहिशों को जलाया राख किया
फिर तिरे नाम का वहाँ ख़ाक ख़ूब उड़ाया था
जब साँस टूटी दिल ने भी धड़कना बंद किया
साँस का दिल पर 'धरम' यह कैसा बक़ाया था
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