कितना डूब चूका हूँ कितना डूबना बाकी है
ऐ ज़िंदगी! तेरी गहराई का मुझे अंदाजा नहीं
हरेक डूब में लब से बस एक आह! निकलती है
पुराना ज़ख्म भरता भी नहीं नया निकल आता है
खुद अपने बदन के ज़ख्म को मैं पहचानता भी नहीं
कि किसने दिए हैं कौन ज़ख्म ये अब मैं जानता नहीं
अपनी धड़कन से भी अब ज़िंदगी का एहसास होता नहीं
यहाँ कितनी भीड़ है ज़माने में मगर कोई पास होता नहीं
इन्तहां हो गई फिर भी ज़ख्म का सिलसिला जारी है
मगर ऐ मेरी ज़िंदगी! मेरा तुझपे अब भी एतवारी है
ऐ ज़िंदगी! तेरी गहराई का मुझे अंदाजा नहीं
हरेक डूब में लब से बस एक आह! निकलती है
पुराना ज़ख्म भरता भी नहीं नया निकल आता है
खुद अपने बदन के ज़ख्म को मैं पहचानता भी नहीं
कि किसने दिए हैं कौन ज़ख्म ये अब मैं जानता नहीं
अपनी धड़कन से भी अब ज़िंदगी का एहसास होता नहीं
यहाँ कितनी भीड़ है ज़माने में मगर कोई पास होता नहीं
इन्तहां हो गई फिर भी ज़ख्म का सिलसिला जारी है
मगर ऐ मेरी ज़िंदगी! मेरा तुझपे अब भी एतवारी है
No comments:
Post a Comment