1.
कि हर किसी को मुक़ाम हासिल हो हर ख़ामोशी को ज़ुबान हासिल हो
अब वहाँ चलो "धरम" जहाँ हर दर्द को अपनी अलग पहचान हासिल हो
2.
वादों से ऊब के अब जां निकले हम तो ख़ुद अपने ही घर में मेहमाँ निकले
जब भी मंज़िल की ओर निकले "धरम" तो पता नहीं फिर कहाँ-कहाँ निकले
3.
अल्फाज़ मोहब्बत के कब के बदल गए अब तो दिल भी दुखाने लगे
मिले जो नज़र से नज़र "धरम" तो सिर्फ बेवफाई ही सामने आने लगे
4.
अब न तो मरने का हुनर ही है 'धरम' न ही जीने का कोई इरादा रहा
एक ही पहलू में आधी मौत आधी ज़िंदगी रही दूसरा पहलू सादा रहा
कि हर किसी को मुक़ाम हासिल हो हर ख़ामोशी को ज़ुबान हासिल हो
अब वहाँ चलो "धरम" जहाँ हर दर्द को अपनी अलग पहचान हासिल हो
2.
वादों से ऊब के अब जां निकले हम तो ख़ुद अपने ही घर में मेहमाँ निकले
जब भी मंज़िल की ओर निकले "धरम" तो पता नहीं फिर कहाँ-कहाँ निकले
3.
अल्फाज़ मोहब्बत के कब के बदल गए अब तो दिल भी दुखाने लगे
मिले जो नज़र से नज़र "धरम" तो सिर्फ बेवफाई ही सामने आने लगे
4.
अब न तो मरने का हुनर ही है 'धरम' न ही जीने का कोई इरादा रहा
एक ही पहलू में आधी मौत आधी ज़िंदगी रही दूसरा पहलू सादा रहा
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