1.
वो जो मौत की नींद सो गई थी 'धरम' वो चाह फिर से क्यूँ जगी
जब ज़िस्म पूरा का पूरा ठंढा था तो फिर दिल में आग क्यूँ लगी
2.
हम साथ तो निकले थे 'धरम' पर मैं कहाँ तक चला तुम कहाँ तक चली
अपनी साँस रूह ज़िस्म नज़र इनमें कुछ भी तो कभी एक साथ न चली
3.
कि बाद उस क़रार के महज़ उसका ख़्याल भी चुभने लगा
दिल के साथ न जाने क्यूँ "धरम" पूरा ज़िस्म भी दुखने लगा
4.
जलती आखों में हर मंज़र बस राख बनकर रह गया
वो इश्क़ भी "धरम" महज़ एक ख़ाक बनकर रह गया
5.
एक ही मौत काफी नहीं होती 'धरम' इश्क़ को मुकम्मल होने में
मुझे तो कई बार यूँ ही मरना पड़ता है महज़ एक ग़ज़ल होने में
वो जो मौत की नींद सो गई थी 'धरम' वो चाह फिर से क्यूँ जगी
जब ज़िस्म पूरा का पूरा ठंढा था तो फिर दिल में आग क्यूँ लगी
2.
हम साथ तो निकले थे 'धरम' पर मैं कहाँ तक चला तुम कहाँ तक चली
अपनी साँस रूह ज़िस्म नज़र इनमें कुछ भी तो कभी एक साथ न चली
3.
कि बाद उस क़रार के महज़ उसका ख़्याल भी चुभने लगा
दिल के साथ न जाने क्यूँ "धरम" पूरा ज़िस्म भी दुखने लगा
4.
जलती आखों में हर मंज़र बस राख बनकर रह गया
वो इश्क़ भी "धरम" महज़ एक ख़ाक बनकर रह गया
5.
एक ही मौत काफी नहीं होती 'धरम' इश्क़ को मुकम्मल होने में
मुझे तो कई बार यूँ ही मरना पड़ता है महज़ एक ग़ज़ल होने में
No comments:
Post a Comment