Sunday 3 March 2019

चंद शेर

1.
जो कुछ भी मैंने लिखा "धरम" वो  लिखने का मुझे कोई हक़ न था
किताब मुक़म्मल तो हो गई थी मगर हाँ उसमें एक भी वरक़ न था

2.
मेरे कदमों का रिश्ता "धरम" न तो ज़मीं से था  न ही मंज़िल से था
ज़िंदगी तमाम उम्र मझधार में रही कहाँ कभी रिश्ता साहिल से था

3.
कि अब तो कोई भी दर्द "धरम" हद से गुज़रता नहीं है
बदन पर ज़ख्म का निशाँ भी बदन पर उभरता नहीं है

4.
कोई रंग जीवन में कब था "धरम"  जब हर कहानी बेरंग रही
कि सांस हर रात बुझता था जलकर औ" जवानी पूरी तंग रही

5.
कागज़ पर उपजे रिश्ते को "धरम" दिल में उतरने में एक उम्र लग जाती है
मैंने अक्सर देखा है दिल में उतरने के पहले ही कोई चिंगारी सुलग जाती है

6.
मेरे क़त्ल के ज़ुर्म का भी "धरम" मुझ ही से हिसाब मांगते हैं
ये कैसे लोग हैं  जो अपने किए हर ज़ुर्म पर  नक़ाब मांगते हैं 

7.
कब मेरा रूह 'धरम' मेरे ज़िस्म में था  कब मेरी साँसें मेरे सीने में थीं
कब मेरा लहू मेरी शिराओं में था औ" कब मेरी नज़र मेरी आँखों थीं 
 

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