तेरी महफ़िल में अब वो 'इल्म-ओ-फ़न नहीं
नुमाइश-ए-फूल तो है मगर कोई चमन नहीं
जो मिलाया हाथ तो ताल्लुक़ थम सा गया है
है तो इश्क़ दोनों तरफ मगर सालिमन नहीं
कि ज़मीं भी लिपट गई 'अर्श भी समा गया
उसके तौर-ए-इश्क़ हैं कोई सेहर-फ़न नहीं
जिसकी कमी से वो शाम एक सुब्ह सी हुई
एक झुलसी हुई नज़र है कोई चितवन नहीं
उन शर्तों पर मौत तो आसाँ थी ज़िंदगी नहीं
हर रोज़ ये वाक़ि'आ है कोई साबिक़न नहीं
आँखों से आँखें यूँ मिली वक़्त भी ठहर गया
वो दिलकश तो लगा मगर तबी'अतन नहीं
अब "धरम" को इस दुनियाँ में खोजना नहीं
मिले तो एक फ़रेब है कोई हक़ीक़तन नहीं
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'इल्म-ओ-फ़न: ज्ञान और कला
चमन: फूलों का बगीचा
सालिमन: पूरे तौर पर, पूर्णतया
सेहर-फ़न: जादूगरी/तांत्रिक
चितवन: किसी की ओर प्रेमपूर्वक या स्नेहपूर्वक देखने की अवस्था
साबिक़न: पहली दफ़ा
तबी'अतन: मन से
हक़ीक़तन: वातस्व में
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