वो जहाँ में घूमता है ये कैसी वफ़ा की प्यास लिए
हर शख़्स खड़ा है चेहरे पर सादा क़िर्तास लिए
न तो कहीं ज़मीं अपनी न ही कोई 'अर्श अपना
कहाँ निकले किधर जाए वह चेहरा उदास लिए
है साफ़ आसमाँ औ" कहीं धूप भी कहीं छाँह भी
जैसे निकला हो ख़ुर्शीद चेहरा बद-हवास लिए
अब अब्र भी बरसे तो लगे कि कोई आग हो जैसे
कि हर रोज़ चिढ़ाती है ज़िंदगी यही एहसास लिए
जब आँखें बंद हुई तब कोई ख़्वाब सँवरने लगा
लगा की कोई बुला रहा हो चेहरा ना-शनास लिए
हद-ए-नज़र तक "धरम" फैली ये कैसी फ़िज़ा है
क़तरा दरिया समंदर सब खड़े है इलफ़ास लिए
क़िर्तास: काग़ज़
'अर्श: आकाश, आसमान
ख़ुर्शीद: सूरज
बद-हवास: तंग
अब्र: बादल
ना-शनास: अजनबी
इलफ़ास: दरिद्रता, ग़रीबी
No comments:
Post a Comment