कुछ रास्ते की ढलान थी कुछ था तिरा रफ़्तार भी
उस सफ़र में मुसलसल बदलता रहा किरदार भी
हरेक पैमाना कह रहा यहाँ अब कोई वफ़ा नहीं
इस बज़्म में बैठे हैं कई बेवफ़ाई के ख़तावार भी
यूँ तो मौत की पनाह में कभी शक्ल मुरझाई नहीं
मगर अब चेहरे पर दिख रहा सीने के आज़ार भी
पहले दिल को लगा की धड़कन ख़ून-बार हो जैसे
फिर कलेजे को खलने लगा साँसों के अज़हार भी
एक चेहरा नूरानी था ख़ुर्शीद पेशानी पर रौशन था
साथ इसके मौज़ूद था वहाँ महताब फुज़ूँ-कार भी
तिरा होना जैसे पलकों का आँखों से रिश्ता बुनना
क्या की "धरम" छुप के भी रहना औ" नुमूदार भी
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ख़तावार : जिसपर अपराध सिद्ध हो चुका हो
ख़ून-बार: ख़ून बरसाने वाला
अज़हार: दीपक जलाना, चिराग़ रौशन करना
फुज़ूँ-कार: उन्नति देने वाला, बढ़ाने वाला, प्रोत्साहक
नुमूदार: सामने आना
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