कि मंज़र ऐसा कभी न था इस मुलाक़ात के पहले
चेहरे पर कोई निशाँ न था तिरे इस घात के पहले
रात को कुछ पता नहीं सुब्ह भी पूरी बे-ख़बर रही
किस शु'ऊर से बुझाई थी आग उस रात के पहले
कि ख़ंजर के नोक पर हाथ बढ़ाया दिल मिलाया
अजब तौर-तरीक़ा है इश्क़ में शह-मात के पहले
रहमत भी बरसती है तो कोई दाग छोड़ जाती है
क़त्ल होते हैं अरमाँ कश्फ़-ओ-करामात के पहले
यह दुनियाँ कैसी यहाँ कौन ख़ुदा यहाँ दीन कैसा
कि घूँट लहू का पीना पड़ता है ज़ियारात के पहले
यह ख़याल किसका है "धरम" ये बातें किसकी हैं
आँखों में क्यूँ उतर जाता है लहू जज़्बात के पहले
'अलामत: निशान, चिह्न, छाप
कश्फ़-ओ-करामात: चमत्कार
ज़ियारात: किसी पवित्र स्थान या वस्तु या व्यक्ति को देखने की क्रिया
जज़्बात : भावनाएँ, ख़यालात, विचार, एहसासात
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