Thursday 29 August 2024

मर कर किधर जाते हैं

पता नहीं जज़्बात सारे  मर कर किधर जाते हैं  
किताबों में कभी-कभी कुछ हर्फ़ उभर जाते हैं

दरमियाँ गुफ़्तगू के आँखें दोनों की बंद ही रही    
फिर नज़र मिलाते हैं  औ" दोनों बिखर जाते हैं

तन्हाई भी आकर चली गई अश्क़ भी सूख गए 
ये किसके इन्तिज़ार में तिरे आठों-पहर जाते हैं

सारे ज़ख़्मों के निशाँ जो चेहरे पर थे मिट चुके  
तू ऐसी दवा बता जिससे दाग़-ए-जिगर जाते हैं

नज़र औ" दिल दोनों के जहाँ अलग-अलग हैं    
मस'अले दिल के सारे मावरा-ए-नज़र जाते हैं

इंसां की मंज़िल दोज़ख़ या जन्नत ही है 'धरम'   
कौन लोग हैं जो मरकर महबूब-नगर जाते हैं
 
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दाग़-ए-जिगर : प्रेम की आग का दाग़
मावरा-ए-नज़र : दृष्टि से परे

Wednesday 21 August 2024

बे-इरादा करना है

पहले हरेक लौ को चराग़ से जुदा करना है  
फिर अपने आप को सबका ख़ुदा करना है

अज़नबी शहर है  सारी गलियाँ अज़नबी हैं  
पता ही नहीं दिल को कहाँ फ़िदा करना है

नज़र भी मिलाना है साँसों में बसाना भी है 
फिर मोहब्बत में ता-उम्र ए'तिदा करना है

पूरा जिस्म छलनी है  दिल ज़ख़्म-ज़ख़्म है        
इस रिश्ते में अब और क्या वादा करना है

इरादतन जो भी किया सिर्फ़ ठोकर खाया  
आगे जो भी करना है  बे-इरादा करना है

रूह को जिस्म में क्यूँ क़ैद रखना "धरम" 
अब रूह को जिस्म का लिबादा करना है 

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ए'तिदा: ज़ुल्म
लिबादा: परिधान

Sunday 11 August 2024

रास्ते सारे एक-तरफ़ा थे

कि रास्ते जितने भी थे वो सारे एक-तरफ़ा थे
औ" उस सफ़र के सारे रहनुमा पुर-जफ़ा थे
   
हर सॉंस पर मंज़िल का पता बदल जाता था 
सारे के सारे  मुसाफ़िर औ" रहबर  ख़फ़ा थे
 
कि अक्स पर आँखों को कभी यक़ीं न हुआ   
आईने जितने भी थे  सारे के सारे बे-वफ़ा थे

वक़्त बुझता ही नहीं दर्द कम होता ही नहीं
कि इस बात पर  दोस्त सारे रू-ब-क़फ़ा थे

हाथ मिलाया तो  नज़रों ने  कई इशारे किये 
कैसे कह दें की इशारे सारे 'अर्ज़-ए-वफ़ा थे

यहाँ करम सारे क़हर ही बरपाते थे "धरम"  
कि सितम सारे-के-सारे उम्मीद-ए-शिफ़ा थे  


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पुर-जफ़ा: अत्याचारी, निर्दयी
रू-ब-क़फ़ा: पीछे मुँह किये हुए
'अर्ज़-ए-वफ़ा: निष्ठा की अभिव्यक्ति 
उम्मीद-ए-शिफ़ा: इलाज की उम्मीद