पहले हरेक लौ को चराग़ से जुदा करना है
फिर अपने आप को सबका ख़ुदा करना है
अज़नबी शहर है सारी गलियाँ अज़नबी हैं
पता ही नहीं दिल को कहाँ फ़िदा करना है
नज़र भी मिलाना है साँसों में बसाना भी है
फिर मोहब्बत में ता-उम्र ए'तिदा करना है
पूरा जिस्म छलनी है दिल ज़ख़्म-ज़ख़्म है
इस रिश्ते में अब और क्या वादा करना है
इरादतन जो भी किया सिर्फ़ ठोकर खाया
आगे जो भी करना है बे-इरादा करना है
रूह को जिस्म में क्यूँ क़ैद रखना "धरम"
अब रूह को जिस्म का लिबादा करना है
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ए'तिदा: ज़ुल्म
लिबादा: परिधान
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