Sunday 11 August 2024

रास्ते सारे एक-तरफ़ा थे

कि रास्ते जितने भी थे वो सारे एक-तरफ़ा थे
औ" उस सफ़र के सारे रहनुमा पुर-जफ़ा थे
   
हर सॉंस पर मंज़िल का पता बदल जाता था 
सारे के सारे  मुसाफ़िर औ" रहबर  ख़फ़ा थे
 
कि अक्स पर आँखों को कभी यक़ीं न हुआ   
आईने जितने भी थे  सारे के सारे बे-वफ़ा थे

वक़्त बुझता ही नहीं दर्द कम होता ही नहीं
कि इस बात पर  दोस्त सारे रू-ब-क़फ़ा थे

हाथ मिलाया तो  नज़रों ने  कई इशारे किये 
कैसे कह दें की इशारे सारे 'अर्ज़-ए-वफ़ा थे

यहाँ करम सारे क़हर ही बरपाते थे "धरम"  
कि सितम सारे-के-सारे उम्मीद-ए-शिफ़ा थे  


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पुर-जफ़ा: अत्याचारी, निर्दयी
रू-ब-क़फ़ा: पीछे मुँह किये हुए
'अर्ज़-ए-वफ़ा: निष्ठा की अभिव्यक्ति 
उम्मीद-ए-शिफ़ा: इलाज की उम्मीद

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