कि रास्ते जितने भी थे वो सारे एक-तरफ़ा थे
औ" उस सफ़र के सारे रहनुमा पुर-जफ़ा थे
हर सॉंस पर मंज़िल का पता बदल जाता था
सारे के सारे मुसाफ़िर औ" रहबर ख़फ़ा थे
कि अक्स पर आँखों को कभी यक़ीं न हुआ
आईने जितने भी थे सारे के सारे बे-वफ़ा थे
वक़्त बुझता ही नहीं दर्द कम होता ही नहीं
कि इस बात पर दोस्त सारे रू-ब-क़फ़ा थे
हाथ मिलाया तो नज़रों ने कई इशारे किये
कैसे कह दें की इशारे सारे 'अर्ज़-ए-वफ़ा थे
यहाँ करम सारे क़हर ही बरपाते थे "धरम"
कि सितम सारे-के-सारे उम्मीद-ए-शिफ़ा थे
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पुर-जफ़ा: अत्याचारी, निर्दयी
रू-ब-क़फ़ा: पीछे मुँह किये हुए
'अर्ज़-ए-वफ़ा: निष्ठा की अभिव्यक्ति
उम्मीद-ए-शिफ़ा: इलाज की उम्मीद
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