Sunday, 10 November 2024

खुल गया है बादबाँ फिर से

सीने में क्यूँ उठ रहा है धुआँ फिर से
क्या कोई दर्द दे रहा है बयाँ फिर से

कि वो ज़ख़्म हो गया है जवाँ फिर से  
लो बदल गया है तर्ज़-ए-बयाँ फिर से

सज़दे में आ गया है आसमाँ फिर से
किसकी छिड़ गई है  दास्ताँ फिर से

देख बिछड़ रहा है  हम-रहाँ फिर से
धोखे से खुल गया है  बादबाँ फिर से
  
कर्बला में हो रहा है इम्तिहाँ फिर से 
यहाँ मिटने वाली है हस्तियॉं फिर से

"धरम" घटने लगी है दूरियाँ फिर से  
लो उजड़ने लगी है बस्तियाँ फिर से

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