यह ख़ुर्शीद अब कहीं और निकलने वाला है
यहाँ से अब दूर चलो कि वक्त ढलने वाला है
यहाँ से अब दूर चलो कि वक्त ढलने वाला है
कलम उठाओ तो आग ख़ुद बरसने लगती है
काग़ज़ पर मत लिखो काग़ज़ जलने वाला है
आरज़ू बलंदी की है तो हर क़त्ल मुनासिब है
बाद ठोकर के भी यहाँ कौन संभलने वाला है
यहाँ ख़ामोश रहो कि नशा तख़्त का तारी है
यहाँ क़तरा अब समंदर को निगलने वाला है
यहाँ कभी न आना यहाँ का दरिया निराला है
यहाँ आब-ए-हयात भी ज़हर में पलने वाला है
यहाँ अपनी शक़्ल आईने में मत देखो "धरम"
यहाँ किरदार हर आइना का बदलने वाला है
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