Tuesday 18 November 2014

कोई ज़ख्म-ए-दिल नहीं है

फ़िज़ा में रंग है खुशबू है बहार भी है
और चमकता वो मेरा दामन-ए-यार भी है

दर्द-ए-हिज़्र का दूर तक कोई निशाँ नहीं है
जिधर भी देखूं दिखता सूरत-ए-यार ही है

बे-पनाह मोहब्बत की कहानी हरेक मज़ार पे है
बतौर-ए-निशानी चूमता रुखसार-ए-यार भी है

मोहब्बत के किस्से है यहाँ मुर्दा नाचता भी है
कि हरेक के बाहों में उसका बाहें-ए-यार भी है

जो बरसता है ग़ुलफाम हरेक शख्स झूमता भी है
नशा तारी है औ" चूमने को आरिज़-ए-यार भी है

अब कोई ज़ख्म-ए-दिल मुझको नहीं होता "धरम"
कि ज़ख्म और दिल के बीच वो नाम-ए-यार ही है

Saturday 15 November 2014

वक़्त से आगे

मैं जो वक़्त से आगे निकलना चाह रहा था  
हर ओर दीवारें थी न कोई राह मिल रहा था

सारे राहगर मुझसे कब के पीछे छूट गए थे
वक़्त राक्षश के मानिंद आग उगल रहा था

बहुत दूर पर वहां देखा पत्थर पिघल रहा था
मानव बनकर दानव कुछ और उबल रहा था

बारिश में शबनम के साथ शोला गिर रहा था
खेत कभी खिल रहा था तो कभी जल रहा था

पूनम की चांदनी का रंग काला पड़ गया था
औ" अँधेरे में तो सबको सबकुछ दिख रहा था

सारा जहाँ दे दो

मेरे अनकहे जज्बात को तुम अपनी जुबाँ दे दो
बरसों से दबे हुए उस प्यार को पूरा आसमाँ दे दो

मैंने सुना है तेरे दिल में ये पूरा ज़माना बसता है
अपना धड़कता दिल देकर मुझे सारा जहाँ दे दो

Thursday 13 November 2014

अपनी कब्र खोद आया

हर रंग में रंगा मगर जीने का न कोई अंदाज़ आया
अब मुझे मेरे हाल पर छोड़ दे मैं तुझसे बाज आया

जो उछाला था पत्थर मैंने उसे अपने ही सर पाया
हर ख़ुशी पे ग़म खाया औ" हर ग़म में मुस्कुराया

मेरा ज़नाज़ा-ए-इश्क़ तो तेरे ही दर से होकर आया
गुरूर-ए-हुस्न के नशे में तुमको ये न नज़र आया

अपने सीने का लहू मैं तेरे घर के चिराग में भर आया
मेरे जलते लहू का रंग भी अब तुझपर बे-असर आया  

मेरे मर्ज़ की कोई दवा न थी औ" दुआ भी बे-असर पाया
कि खुद अपने मरने का गैरों से जब मैंने ये खबर पाया

मज़ार-ए-इश्क़ के बगल में "धरम" खुद अपनी कब्र खोद आया
ता-उम्र तन्हाई में रहा और बाद मरने के ये रिश्ता जोड़ आया

Friday 7 November 2014

सीने से लहू रिसता है

जब भी मेरे सीने से लहू रिसता है
मेरा ज़ख्म बहुत खूब मुस्कुराता है

मेरा हरेक दर्द मेरे कान में बुदबुदाता है
और धमनियों में लवण का संचार होता है 

Tuesday 4 November 2014

चंद शेर

1.

तेरे शक्ल का नक़ाब लिए मैं खुद मारा फिरता हूँ
तेरे दुश्मन की गली में मैं यूँ ही आवारा फिरता हूँ

2.

ऐे गर्द-ए-सफर तेरा शुक्रिया
उसके गली की एक निशानी तो साथ है

3.

न जाने किस चमन की खुशबू फैली है मेरी ज़िंदगी में "धरम"
जो सिमट गई तो बिखर गई औ" जो बिखर गई तो सिमट गई

4.

ज़िंदगी कितनी नमकीन है तब पता चलता है
जब सारा मिठास बनकर पसीना बह जाता है

5.

कुछ दर्द मुझसे उधार लो तुम अपनी ज़िंदगी सँवार लो
कुछ ख़ुशी मुझको उधार दो मैं अपनी ज़िंदगी सँवार लूँ

6.

ये कैसी महफ़िल है कि यहाँ हर चेहरा अजनबी है
बस मैं एक फ़क़ीर हूँ और बाकी सब रियासती है 

हर किसी की हस्ती

बीच समंदर में लहरों के हिलोरों में
अकेला खड़ा अब तू क्या देखता है
सूरज तो कब का डूब चुका है
अब किसके डूबने की आश तकता है

मौजों से तेरी वो पुरानी दोस्ती
न जाने कब की डूब चुकी है वो कश्ती
वक़्त किसी को कहाँ मोहलत देता है
बस मिटा देता है वो हर किसी की हस्ती

Sunday 2 November 2014

आँख बच्चों के सपने बुजुर्ग के

जब भी बुजुर्ग
अपने बच्चों के आखों से ख्वाब देखते हैं
अहा! क्या नज़ारा है
भरी अमावस में भी महताब देखते हैं

उनके अपने चेहरे पर
भले ही झुर्रियां क्यों न फैली हो
मगर हाँ बच्चों के चेहरे पर
वो एक चमकता आफताब देखते हैं

रक्त का वो प्रवाह जो पत्थर को भी चूर कर दे
उनकी धमनियों में अब ठंढा पड़ गया है
बच्चे को भरकर अपने अंक में
रक्त के उस प्रवाह को महसूस करते हैं