Tuesday 4 November 2014

हर किसी की हस्ती

बीच समंदर में लहरों के हिलोरों में
अकेला खड़ा अब तू क्या देखता है
सूरज तो कब का डूब चुका है
अब किसके डूबने की आश तकता है

मौजों से तेरी वो पुरानी दोस्ती
न जाने कब की डूब चुकी है वो कश्ती
वक़्त किसी को कहाँ मोहलत देता है
बस मिटा देता है वो हर किसी की हस्ती

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