1.
जाने किस उम्मीद से "धरम" वो ख्वाईश फिर जगी
कि मेरे हलक़ में क्यूँ बुझी हुई पुरानी आग फिर लगी
2.
समंदर ने तो ता-उम्र प्यासा रखा प्यास अपने ही बदन के पानी ने बुझाई
अंत में ख़ुद अपने ज़िस्म में "धरम" ख़ुद अपनी ही साँसों ने आग लगाई
3.
न ही कहीं कोई नज़र प्यासी है न ही तस्सबुर में कोई चेहरा उभरता है
कि सीने में न ही कोई साँस बाक़ी है 'धरम' न ही कभी दिल धड़कता है
जाने किस उम्मीद से "धरम" वो ख्वाईश फिर जगी
कि मेरे हलक़ में क्यूँ बुझी हुई पुरानी आग फिर लगी
2.
समंदर ने तो ता-उम्र प्यासा रखा प्यास अपने ही बदन के पानी ने बुझाई
अंत में ख़ुद अपने ज़िस्म में "धरम" ख़ुद अपनी ही साँसों ने आग लगाई
3.
न ही कहीं कोई नज़र प्यासी है न ही तस्सबुर में कोई चेहरा उभरता है
कि सीने में न ही कोई साँस बाक़ी है 'धरम' न ही कभी दिल धड़कता है
No comments:
Post a Comment