Wednesday 3 April 2019

चंद शेर

1.
जाने किस उम्मीद से  "धरम"  वो ख्वाईश फिर जगी
कि मेरे हलक़ में क्यूँ बुझी हुई पुरानी आग फिर लगी

2.
समंदर ने तो ता-उम्र प्यासा रखा प्यास अपने ही बदन के पानी ने बुझाई
अंत में  ख़ुद अपने ज़िस्म में "धरम" ख़ुद अपनी ही साँसों ने आग लगाई

3.
न ही कहीं कोई नज़र प्यासी है  न ही तस्सबुर में कोई चेहरा उभरता है 
कि सीने में न ही कोई साँस बाक़ी है 'धरम' न ही कभी दिल धड़कता है  

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