Tuesday 23 April 2019

रास्ता ख़ुद ही मुड़ जाता है

वक़्त हर  रोज  क्यूँ  रात  की दहलीज़ पर छोड़  जाता है
सुबह होने  से पहले  ही  वो मुझसे  रिश्ता तोड़  जाता है

कि हर शाग़िर्द मुझसे मिलकर  मुझे ही  तन्हा  करता है
वो हर रोज़  हिज़्र की  दीवार में  एक ईंट  जोड़  जाता है

जब चला था तो मैं  मेरी किस्मत औ" रहबर सब साथ थे 
क्यूँ मंज़िल क़रीब आते ही रास्ता ख़ुद ही  मुड़   जाता है

जब पास मेरे मसीहा औ" क़ातिल एक ही शक्ल में आए
तो मौत औ" जीवन दोनों "धरम" मुझसे बिछड़ जाता है

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