Saturday 1 June 2019

हर ओर ज़िस्म लहराता रहा

जो छलक कर जाम प्याले से ज़मीं पर गिरा तो वो सूखता रहा
कितने सारे हलक़ प्यासे थे मगर हर हलक़ सिर्फ तरसता रहा

ज़िंदगी रेत की  तरह थी  मुट्ठी से हर वक़्त  बस  सरकती रही
ज़मीं पर गिरी  धूल में मिली  वह  सिर्फ भर नज़र  देखता रहा

वो  इश्क़ मोहब्बत उल्फ़त  सब का  बज़्म में  एक ही रंग रहा
वो सब  बस कदम ही चूमती रही हर ओर ज़िस्म लहराता रहा

रूह को जब शक्ल मिली  तो आईने ने उसको भी नकार दिया
ज़िस्म से निकलकर  रूह जाता रहा  ज़िस्म  बस पुकारता रहा

हुनर पर यकीं था  तो ज़माने से  न जाने क्यूँ  उम्मीद  लगा बैठे
उम्मीद के तराजू पर हर हुनर "धरम" बस उम्र भर झूलता रहा 

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