जो छलक कर जाम प्याले से ज़मीं पर गिरा तो वो सूखता रहा
कितने सारे हलक़ प्यासे थे मगर हर हलक़ सिर्फ तरसता रहा
ज़िंदगी रेत की तरह थी मुट्ठी से हर वक़्त बस सरकती रही
ज़मीं पर गिरी धूल में मिली वह सिर्फ भर नज़र देखता रहा
वो इश्क़ मोहब्बत उल्फ़त सब का बज़्म में एक ही रंग रहा
वो सब बस कदम ही चूमती रही हर ओर ज़िस्म लहराता रहा
रूह को जब शक्ल मिली तो आईने ने उसको भी नकार दिया
ज़िस्म से निकलकर रूह जाता रहा ज़िस्म बस पुकारता रहा
हुनर पर यकीं था तो ज़माने से न जाने क्यूँ उम्मीद लगा बैठे
उम्मीद के तराजू पर हर हुनर "धरम" बस उम्र भर झूलता रहा
कितने सारे हलक़ प्यासे थे मगर हर हलक़ सिर्फ तरसता रहा
ज़िंदगी रेत की तरह थी मुट्ठी से हर वक़्त बस सरकती रही
ज़मीं पर गिरी धूल में मिली वह सिर्फ भर नज़र देखता रहा
वो इश्क़ मोहब्बत उल्फ़त सब का बज़्म में एक ही रंग रहा
वो सब बस कदम ही चूमती रही हर ओर ज़िस्म लहराता रहा
रूह को जब शक्ल मिली तो आईने ने उसको भी नकार दिया
ज़िस्म से निकलकर रूह जाता रहा ज़िस्म बस पुकारता रहा
हुनर पर यकीं था तो ज़माने से न जाने क्यूँ उम्मीद लगा बैठे
उम्मीद के तराजू पर हर हुनर "धरम" बस उम्र भर झूलता रहा
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