कि हर वक़्त फूलों को पैरों तले रौंदा औ" काँटों पर सोया
ज़ीस्त तू मुझे ये मत बता मुझे कितना खोया कितना पाया
आँखों से जब भी अश्क छलकते हैं उसे छलक जाने दो
ज़िंदगी से तुम कभी हिसाब मत करना कि कितना रोया
मौसम हिज़्र का है बारिश लहू की है हर अश्क प्यासा है
आओ कहीं दूर चलें यहाँ न जाने फैला है किसका साया
कल तुझको पलट के देखा था अब फिर कभी न देखूंगा
कल मेरी साँस फूली थी पूरा का पूरा मन भी था भरमाया
तेरा ज़मीं पे कुछ न था तेरा जहाँ तो सितारों के आगे था
भटकाकर ज़मीं पर खुद को "धरम" तुम कितना भुलाया
ज़ीस्त तू मुझे ये मत बता मुझे कितना खोया कितना पाया
आँखों से जब भी अश्क छलकते हैं उसे छलक जाने दो
ज़िंदगी से तुम कभी हिसाब मत करना कि कितना रोया
मौसम हिज़्र का है बारिश लहू की है हर अश्क प्यासा है
आओ कहीं दूर चलें यहाँ न जाने फैला है किसका साया
कल तुझको पलट के देखा था अब फिर कभी न देखूंगा
कल मेरी साँस फूली थी पूरा का पूरा मन भी था भरमाया
तेरा ज़मीं पे कुछ न था तेरा जहाँ तो सितारों के आगे था
भटकाकर ज़मीं पर खुद को "धरम" तुम कितना भुलाया
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