दर्द किसी पेड़ का कोई एक फल नहीं होता
वह तो पूरा का पूरा दरख़्त होता है
जिसकी जड़ें किसी भी सीने की गहराई से
ज़्यादा गहरी होती है
दर्द को सीने में समेटना
इसीलिए मुमकिन नहीं होता
दर्द महज़ एक एहसास नहीं होता
वह तो कई एहसास से मिलकर बनता है
जो सीने के परत-दर-परत को चीरते हुए
सीने से बाहर निकल जाता है
बाद इसके बाक़ी सारे एहसास
बिना किसी रुकावट के
सीने के आर-पार होते रहते हैं
दर्द कभी भी सीने के किनारे से नहीं गुजरता
वह समान रूप से सीने में फैलता
हर एहसास को
छूता-टटोलता जिलाता-मारता निकल जाता है
अपने पीछे प्रश्न छोड़कर
कि दर्द पैदा होता है बढ़ता है
मगर बूढ़ा क्यूँ नहीं होता मरता क्यूँ नहीं ?
वह तो पूरा का पूरा दरख़्त होता है
जिसकी जड़ें किसी भी सीने की गहराई से
ज़्यादा गहरी होती है
दर्द को सीने में समेटना
इसीलिए मुमकिन नहीं होता
दर्द महज़ एक एहसास नहीं होता
वह तो कई एहसास से मिलकर बनता है
जो सीने के परत-दर-परत को चीरते हुए
सीने से बाहर निकल जाता है
बाद इसके बाक़ी सारे एहसास
बिना किसी रुकावट के
सीने के आर-पार होते रहते हैं
दर्द कभी भी सीने के किनारे से नहीं गुजरता
वह समान रूप से सीने में फैलता
हर एहसास को
छूता-टटोलता जिलाता-मारता निकल जाता है
अपने पीछे प्रश्न छोड़कर
कि दर्द पैदा होता है बढ़ता है
मगर बूढ़ा क्यूँ नहीं होता मरता क्यूँ नहीं ?
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