कि हर बार उसके हर्फ़ में मुझे अपना हर्फ़ मिलाने के लिए
ख़ुद को ही मारना पड़ता है उसको ख़ुद में जिलाने के लिए
ज़माने की छुरी से सामने उसके अपने ही ज़िस्म को काटना
कि न जाने क्या-क्या करना पड़ता है एक दर्द जताने के लिए
जब ख़ुद से ही बे-हिसाब उम्मीद लगाए बैठे हैं तो क्या कहने
अपनी ही नींद उधार लेनी पड़ती है ख़ुद को सुलाने के लिए
बस आह! निकलती है दूर तक फैले वीरां दश्त को देखकर
आज यहाँ कोई भी तो नहीं है मुझे वापस घर बुलाने के लिए
हर ख़्वाब हकीकत था हर लोग अपने थे जब जाँ बाक़ी थी
जब जाँ निकली पास कोई भी न था मुर्दे को सजाने के लिए
खुली आँखों से हकीकत भी नहीं दिखता तो ख़्वाब का क्या
कभी नींद भी तो आती नहीं कोई भी ख़्वाब दिखाने के लिए
ख़ुद पर हुए मुसलसल ज़ुर्म का नतीजा अब और क्या होता
दर्द-ओ-आँसू दोनों उधार लेता हूँ ख़ुद को रुलाने के लिए
प्रारम्भ मध्य या अंत किसी का कुछ भी तो पता नहीं चलता
दरम्याँ हमारे ये कौन सा रिश्ता है "धरम" निभाने के लिए
ख़ुद को ही मारना पड़ता है उसको ख़ुद में जिलाने के लिए
ज़माने की छुरी से सामने उसके अपने ही ज़िस्म को काटना
कि न जाने क्या-क्या करना पड़ता है एक दर्द जताने के लिए
जब ख़ुद से ही बे-हिसाब उम्मीद लगाए बैठे हैं तो क्या कहने
अपनी ही नींद उधार लेनी पड़ती है ख़ुद को सुलाने के लिए
बस आह! निकलती है दूर तक फैले वीरां दश्त को देखकर
आज यहाँ कोई भी तो नहीं है मुझे वापस घर बुलाने के लिए
हर ख़्वाब हकीकत था हर लोग अपने थे जब जाँ बाक़ी थी
जब जाँ निकली पास कोई भी न था मुर्दे को सजाने के लिए
खुली आँखों से हकीकत भी नहीं दिखता तो ख़्वाब का क्या
कभी नींद भी तो आती नहीं कोई भी ख़्वाब दिखाने के लिए
ख़ुद पर हुए मुसलसल ज़ुर्म का नतीजा अब और क्या होता
दर्द-ओ-आँसू दोनों उधार लेता हूँ ख़ुद को रुलाने के लिए
प्रारम्भ मध्य या अंत किसी का कुछ भी तो पता नहीं चलता
दरम्याँ हमारे ये कौन सा रिश्ता है "धरम" निभाने के लिए
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