न जाने क्या-क्या कह गया वो एक लम्हा बस इशारे में
लोग समंदर तैर के आ गए मैं बस बैठा रहा किनारे में
हरेक साँस पर अब क्या कहें बस दम ही निकलता था
देखने को और कहाँ कुछ रह गया था उस नज़ारे में
ता-उम्र वो जानते रहे कि मेरे ज़िंदगी का सहारा वो थे
बाद मेरे मरने के कुछ भी तो बचा न था उस सहारे में
एक अजनबी आवाज़ थी जो मेरे कानों तक आ रही थी
देखा गौर से मगर कोई चेहरा न उभरा उसके पुकारे में
जहाँ सूखा था दरिया 'धरम' वहाँ कैसे फिर उफान आया
हम सोचते रहे कुछ भी पता न चला कुदरत के इशारे में
लोग समंदर तैर के आ गए मैं बस बैठा रहा किनारे में
हरेक साँस पर अब क्या कहें बस दम ही निकलता था
देखने को और कहाँ कुछ रह गया था उस नज़ारे में
ता-उम्र वो जानते रहे कि मेरे ज़िंदगी का सहारा वो थे
बाद मेरे मरने के कुछ भी तो बचा न था उस सहारे में
एक अजनबी आवाज़ थी जो मेरे कानों तक आ रही थी
देखा गौर से मगर कोई चेहरा न उभरा उसके पुकारे में
जहाँ सूखा था दरिया 'धरम' वहाँ कैसे फिर उफान आया
हम सोचते रहे कुछ भी पता न चला कुदरत के इशारे में
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