Monday 19 August 2019

चंद शेर

1.
वो दीपक बुझने के बाद "धरम" रात अमावस की यूँ ठहर गई
कि मैं वहीँ खड़ा का खड़ा रह गया औ" पूरी ज़िंदगी गुज़र गई

2.
क्या कि दर्द-ए-इश्क़ का इलाज़ हो न सका और मर्ज़ बढ़ता ही गया
बाद एक एहसान के 'धरम' दूसरा एहसान और कर्ज़ बढ़ता ही गया

3.
जो उड़ के ग़ुबार दामन तक आ गया तो न जाने "धरम" कितने ज़ख्म छुपा गया
चेहरे पर अब दर्द की ख़ुमारी दिखाई नहीं देती ज़ीस्त किसी और रंग को पा गया

4.
मंज़िल को पाने की उम्मीद पूरी तरह से टूटी न थी इसलिए रास्ता बदल लिया था
मंज़िल को पाने से पहले मिले सारे सोहरत को 'धरम' मैंने ख़ुद ही निगल लिया था

5.
उसने ग़ुबार सिर्फ मेरे ज़िस्म से हटाया आँखों में रहने दिया
फिर अपनी महफ़िल में 'धरम' उसने मुझे कुछ कहने दिया

6.
हर मुलाक़ात में उसने बस एक एहसान उतारा मुझपर
करके मेरी ऑंखें नम 'धरम' क्या-क्या न गुजारा मुझपर

7.
दवा तब दी गई थी "धरम" जब ज़ख्म ख़ुद-ब-ख़ुद भर आया था
शोहरत भी तब मिली थी जब एक दाग दामन में उभर आया था

8.
ज़िस्म को जब से "धरम" दो रूहों ने घेर रखा है
ज़माने ने तब से उस ज़िस्म से नज़र फेर रखा है

9.
कि उसका क्या अंदाज़-ए-ज़माना है एक अलग ही फ़साना है
क्या कहें "धरम" दिल से दिल मिलाना है  औ" दिल दुखाना है

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