Thursday, 10 October 2024

सूरज को जला दूंगा

जब भी याद आयेगी तुरत भुला दूंगा   
सोये हुए गुलशन को और सुला दूंगा

ग़र नज़र मिलेगी चाँदनी रौशन होगी    
हँसती हुई आँखों को फिर रुला दूंगा

ग़र चाँदनी डूबेगी साँसें सुलग उठेंगी      
दिल के शोलों से सूरज को जला दूंगा

तिरे बज़्म में ग़र तुझपे कुछ गुजरेगी 
हुस्न हो या इश्क़ मिट्टी में मिला दूंगा

साँसें अभी ही टूटी हैं कि जरा ठहरो   
साँसों को सीने में  फिर से बुला दूंगा

कभी ख़ुद भी चल तू मेरे पास तो आ   
यहाँ दिल में एक आसमाँ खुला दूंगा

पहले कुछ बात शुरू तो हो "धरम" 
कुछ तीर नज़रों से फिर चला दूंगा  

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