जब भी याद आयेगी तुरत भुला दूंगा
सोये हुए गुलशन को और सुला दूंगा
ग़र नज़र मिलेगी चाँदनी रौशन होगी
हँसती हुई आँखों को फिर रुला दूंगा
ग़र चाँदनी डूबेगी साँसें सुलग उठेंगी
दिल के शोलों से सूरज को जला दूंगा
तिरे बज़्म में ग़र तुझपे कुछ गुजरेगी
हुस्न हो या इश्क़ मिट्टी में मिला दूंगा
साँसें अभी ही टूटी हैं कि जरा ठहरो
साँसों को सीने में फिर से बुला दूंगा
कभी ख़ुद भी चल तू मेरे पास तो आ
यहाँ दिल में एक आसमाँ खुला दूंगा
पहले कुछ बात शुरू तो हो "धरम"
कुछ तीर नज़रों से फिर चला दूंगा
No comments:
Post a Comment