समंदर अपनी मर्ज़ी से कब किनारा डुबोता है
लहरें तब आती हैं जब कोई जज़्बात चुभोता है
उसे उरूज औ" ज़वाल से कोई फ़र्क़ ही कहाँ
वो एक ही धागे में ज़मीं औ" आसमाँ पिरोता है
कहानी कैसी थी जिसमें हर किरदार ज़िंदा था
यूँ मोहब्बत में ऐसा कब किसके साथ होता है
दरख़्तों की आँखें भी नम होकर झुक जाती हैं
इस वीराने दश्त में इतना टूटकर कौन रोता है
कि दरमियाँ दो ज़िस्मों के ये रूह किसकी है
बड़े इल्म से जो ज़मीं पर कुछ आसमाँ बोता है
मुफ़लिसी के इस आलम को किससे बयाँ करे
वो अपने काँधे पर "धरम" ग़ैरों का सर ढोता है
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