ये कैसा मोम है जो किसी भी आग में पिघलता नहीं
बड़ी हैरत की बात है कीचड़ उछाले उछलता नहीं
अजीब मुलाक़ात थी जो मरज़ मिला वो ऐसा मिला
दर्द दिल में ऐसे समाया कि निकाले निकलता नहीं
इस बार का ये तूफ़ाँ पिछले सारे तूफ़ाँ से अलग था
चराग़ इस तरह बुझा कि फिर जलाये जलता नहीं
यादें बोझ हो चुकी थी यादों को दफ़्न करना पड़ा
उस क़ब्र से न जाने क्यूँ नज़र मिलाये मिलता नहीं
जुनूँ जब बलंदी पर पंहुचा हक़ीक़त ने राज़ खोला
वो ठंढक आई ज़हन में लहू उबाले उबलता नहीं
कि वो मसअला तो सिर्फ़ दो चराग़ों का था "धरम"
कैसी पसरी थी तारीकी शम' संभाले संभलता नहीं
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